प्रियतम के पाँव
पाँव में पायल, नंगे पाँव,
छुन छुन करती पास में आए।
साफ़-सुधरा, सफ़ेद सा कुर्ता,
दामन उसका नील-नीलम सा।
नहीं कहीं से बावन गज़ का,
पर उसमें ही मन लहराए।
सोन-सुनेहरी चुन्नी उसकी,
चार चाँद कंठी-कुंडल लाए।
तन्वी कमर पर बँधी तगड़ी,
साथ में वो भी छन-छन गाये।
माथे की छोटी काली बिंदी,
नयनों में काजल की रेखा।
लबों पे फैली रवि की किरणें,
जैसे बिखरी हो संध्य मेघा।
पाँव में पायल, नंगे पाँव,
छुन छुन करती पास में आए।
बैठ वो जाए, यार मेरा थक जाए,
आखिर कब तक इतना बोझ उठाए?
कंधे पे मेरे झटपट,
सिर उसका धम्म से आए।
धीरे-धीरे पकड़ आस्तीन,
हथबांह तक लपेटती जाए।
नख पर सजा नखराग,
कलाइयों में कंगनों की बात।
चुपके चुपके तके नज़र बंद,
लग न जाए कहीं नज़र का हाथ।
काजल-सी रातें, चाँद से गाल,
जुल्फ़ें बिखेरीं बादल की चाल।
हौले से बोले, मंद से हंस जाये,
धीरे धीरे मन को भाए।
अपनी धुन में नाचती गाये
पाँव में पायल, नंगे पाँव,
छुन छुन करती पास में आए।